222 INSPIRING KAHANIYAN: A Treasury of Inspirational Stories (Hindi Edition)
Goyal, Shiv Kumarगीता में कहा गया है—‘श्रुत्वान्येभ्य
उपासते’, जो महापुरुषों के श्रीमुख से कल्याणकारी बातें सुनकर उनकी उपासना-अनुसरण करते
हैं, उनका जीवन सहज ही में आदर्श बन जाता है।
मेरे पिताश्री (भक्त श्री रामशरणदासजी)
संत, महात्माओं और विद्वानों के सत्संग के व्यसनी थे। वे उनके प्रवचन-उपदेशों के प्रेरणादायी
अंशों को ‘कल्याण’ तथा अन्य धार्मिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कराया करते थे। मुझे
उन्हीं के आशीर्वाद व प्रेरणा से सत्संग करने व सत्साहित्य के अध्ययन में रुचि पैदा
हुई। मैंने रामायण, महाभारत, पुराणों, वेदों, उपनिषदों की कथाएँ पढ़ीं। संत, महात्माओं
व विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख महापुरुषों की जीवनियाँ पढ़ीं। उनमें दिए गए आख्यानों
और दृष्टांतों को सरल भाषा में कथाओं के रूप में लिखना शुरू किया। प्रमुख बाल पत्रिका
‘नंदन’ के संपादक श्री जयप्रकाश भारती ने मुझसे आग्रह किया कि ‘नंदन’ के प्राचीन कथा
विशेषांक के लिए मैं प्रतिवर्ष कुछ संतों व धर्माचार्यों की कहानियाँ, जिन्हें पढ़कर
बालक प्रेरणा ले सकें, लिखा करूँ। मैंने ‘नंदन’ के लिए सरल भाषा में अनेक प्रेरक कथाएँ
लिखीं। पाठकों ने उन्हें बहुत पसंद किया। मैं लिखता रहा, नियमित लिखता रहा तथा अब तक
कई हजार प्रेरक बोध कथाएँ लिख चुका हूँ। जब कोई पाठक मेरी लिखी बोध कथा पढ़कर लिखता
है कि ‘इस लघु कथा ने मेरे लिए ‘दीप स्तंभ’ का काम किया है, मेरी निराशा हताशा दूर
कर मुझे कर्मनिष्ठ बनने की प्रेरणा दी है’ तो मैं आत्मिक संतोष अनुभव करता हूँ कि मेरा
लेखन सार्थक हुआ, जिससे कम-से-कम एक व्यक्ति ने तो प्रेरणा ली।